Ulcerative Colitis- अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण और होम्योपैथिक इलाज  

अनुसंधान पर आधारित होमियोपेथी का अल्सरेटिव कोलाइटिस पर नियंत्रण

  •  डॉ. शाह     
  •  लाईफफोर्स 
  •  अल्सरेटिव कोलाइटिस को जानिए
  •  होमियोपेथी के बारेें मे जानिए

अल्सरेटिव कोलाइटिस को जानिऐें

  • अल्सरेटिव कोलाइटिस क्या है ?        
  • रोग के कारण
  • रोग के कारण      
  • औपचारिक उपचार
  • होयिोपेथिक उपचार           
  • मरीजोें के लिए आहार

अल्सरेटिव कोलाइटिस क्या है ?

अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis) आतिड़यो की बीमारी है जिसके फलस्वरुप मड़ी आतिड़यो मे सूजन आ जाती है और उसमे छाले या घाव (Ulcer) पड़ जाते है । यह बीमारी ज्यादातर बड़ी आतड़ी (कोला@न) के किसी हिस्से मे (अक्सर अंतिम भाग मेें) होती है या पूरे कोल@न को प्रभावित करती है । अल्सरेटिव कोलाइटिस सभी उम्र के लोगो मे पायी जाती है । लेकिन सामान्यत: यह १५ से ३० वर्ष की आयु के लोगो मे पायी जाती है । ५० से ७० वर्ष के लोगो मे यह बहुत कम पायी जाती है । यह पुरुषो और महिलाओ को एक समान प्रभावित करती है और कभी कभी इसकी पुनरावृत्ती होती है ।

रोग के लक्षण

  • पेट मे दर्द होना
  • पाखाने मे खून जाना
  • थकावट
  • वजन कम होना    
  • भुख कम हो जाना
  • मलाशय से खुन आना         
  • शरीर मे पानी और पुष्टिकर तत्वो की कमी हो जान

रोग के कारण

बाहरी कारण :

किसी प्रकार के खाने से दवाईयोें से,  आतडिय़ो की इनफेक्शन से इत्यादी

आंतरिक कारण :

शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति मेें खोट होने के कारण जननिक प्रवृति के कारण मानसिक तनाव के कारण

औपचारिक उपचार

  • Aminosalicylates
  • Immuno modulators : Azathioprine, 6-mercaptopurine (6-MP)
  • Corticosteroids
  • दर्द, दस्त और इन्फेक्शन कम करने वाली दवाईया
  • अगर दवाईयोें से आराम नही होता है तो शल्य क्रिया का उपयोग किया जाता है ।

होमियोपेथिक उपचार

होमियोपेथी अल्सरेटिव कोलाइटिस के उपचार मेें एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । होयिोपेथी दवाईया अल्सरेटिव कोलाइटिस का जड़ से इलाज करती है और वे अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति के संतुलन को बराबर करती है । इन दवाईयो से पेट का दर्द दस्त और पाखाना मे खून जाना यह सभी लक्षण कम हो जाते है । साथ साथ इन लक्षणोें की पुनरावृत्ती भी कम हो जाती है । इन दवाईयोें से लंबे समय तक आराम रहता है । रोग के लक्षण कम करने के साथ साथ यह हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा करती है और पुष्टिकर तत्वो को ज्यादा अच्छी तरह से समेटने मेें शरीर की मदद करती है ।

होमियोपेथी से अल्सरेटिव कोलाइटिस का उपचार करते वत इस बिमारी को  हर मरीज को अलग माना जाता है और उसकी बीमारी की बारीकियोें को ध्यान से परखा जाता है । होमियोपेथी मे ऐसी कोई एक दवाई नही जो सभी अल्सरेटिव कोलाइटिस के मरीजो मेें काम आती हो बल्कि हर अल्सरेटिव कोलाइटिस के मरीज के विशेष लक्षणो को जाचा जाता है और उसके आधार पर ही दवाई दी जाती है । साथ साथ उसके व्यक्तिगत लक्षणो को भी उतना ही महत्त्व दिया जाता है जैसे कि उसकी मानसिक अवस्था, जाननिक प्रवृति इत्यादि इन सभी लक्षणो का मूल्याकन करने के बाद एक व्यक्तिगत होमियोपेथिक दवाई दी जाती है जो उसे पूर्ण रुप से आराम देती है और उसके अल्सरेटिव कोलाइटिस का इलाज जड़ से करती है । यह दवाई लेने के बाद उसके लक्षणोें की तीव्रता कम हो जाती है और उनकी पुनरावृत्ति भी कम हो जाती है ।

अल्सरेटिव कोलाइटिस के मरीजो के लिए आहार :

इन मरीजो मेें आम आदमी की तुलना मेें आहार के मूल नियमोें मेें कोई बदलाव नही है ।  मरीजो को एक संतुलित आहार लेना चाहिए जिसमे कार्बोेहाइड्रेट (Carbohydrates) (जैसे चावल, ब्रेड, आलू इत्यादि) प्रोटीन (Proteins)) (जैसे दाल, फली, मटर दूध मास, मछली, अंडा, बादाम इत्यादि) सब्जी, तरकारी और फल होने चाहिये । 

  • मरीजो को तेल, घी और चबीa वाली वस्तुएं कम खानी चाहिए क्योकि इनसे दस्त और वायु होने की संभावना बढ़ जाती है ।
  • दूध और दूध से बनी वस्तुए जो हमे कैल्सियम और प्रोटीन देती है उनका समावेश आहार मे होना चाहिए लेकिन अगर इनके खाने से वायु या दस्त होते हो तो इनकी जगह दही, सोयाबीन के दूध का उपयोग किया जा सकता है ।
  • मादक वस्तूओें का सेवन बंद कर देना चाहिए ।
  • फल और फलो के रस की अधिक्ता, प्याज, मसालेदार खाना कई बार रोग के लक्षणो को बढ़ाते है इसलिए उनका उपयोग कम कर देना चाहिए ।
  • जिन मरीजो को की वजह से कब्ज की तकलीफ रहती है उनके खाने मे रेशा (fibre)  सही मात्रा मे होना चाहिए, इससे कब्ज की शिकायत कम हो जाती है ।
  • साथ साथ पानी और द्रव पदार्थो की मात्रा भी ज्यादा होनी चाहिए । इससे पाखाना नर्म और नियमित होता है ।
  • मीठी चीजो का सेवन कम कर देना चाहिए ।
  • वह पदार्थ नही खाने चाहिए जो घर में ना बने हो और जिनमे खाद्य वस्तु को खराब होने से बचाने वाले रसायन (preservative)  मिलाए गए हो ।

 

अल्सरेटिव कोलाइटिस की गभीरता के समय का उपयुक्त आहार:

  • बार बार दस्त और उल्टी होने के कारण मरीज को निर्जलीकरण (Dehydration) ना हो जाए यह ध्यान रखना चाहिए । मरीज को पानी और द्रव पदार्थो का सेवन बढ़ाना चाहिए और नमक-शक्कर मिलाया हुआ पानी (Oral Rehydration Solution)  भी पी सकते है ।
  • तेल घी और चरबी वाले खाने के पदार्थ कम खाने चाहिए क्योंकि इनसे दस्त बढ़ सकता है परंतु कारबोहाइड्रेट और प्रोटीन की मात्रा संतुलित करनी चाहिए ताकि मरीज का वजन कम ना हो जाए ।
  • फल और फलो के रस की अधिकता प्याज, मसालेदार खाना कई बार रोग के लक्षणो को बढ़ाते है इसलिए इनका उपयोग कम कर देना चाहिए ।
  • जिन मरीजों को Distal Colitis  की वजह से कब्ज की तकलीफ रहती है उनके खाने में रेशा (fibre)  सही मात्रा मे होना चाहिये, इससे कब्ज की शिकायत कम हो जाती है । साथ साथ पानी और द्रव पदार्थो की मात्रा भी ज्यादा होनी चाहिए । इससे पाखाना नर्म और नियमित होता है । मीठी चीजो का सेवन कम कर देना चाहिए । वह पदार्थ नही खाने चाहिए जो घर मे ना बने हो और जिनमे खाद्य वस्तु को खराब होने से बचाने वाले रसायन (preservative)  मिलाए गए हो ।

अल्सरेटिव कोलाइटिस की गंभीरता के समय का उपयुक्त आहार:

  • बार बार दस्त और उल्टी होने के कारण मरीज को निर्जलीकरण (Dehydration) ना हो जाए यह ध्यान रखना चाहिए । मरीज को पानी और द्रव पदार्थो का सेवन बढ़ाना चाहिए और नमक-शक्कर मिलाया हुआ पानी (Oral Rehydration Solution) भी पी सकते है ।
  • तेल घी और चरबी वाले खाने के पदार्थ कम खाने चाहिए क्योंकि इनसे दस्त बढ़ सकता है परंतु कारबोहाइड्रेट और प्रोटीन की मात्रा संतुलित करनी चाहिए ताकि मरीज का वजन कम ना हो जाए ।
  • आतडियाँ से रक्तस्त्राव के कारण खून मे Haemoglobin की कमी आ सकती है और अन्य Vitamins की भी कमी आ सकती है, इसलिए मरीजो को और  की गोलियों का सेवन करना पड सकता है ।
  • पानी द्रव पदार्थ Magnesium  और Vitamin के लेने से बीमारी की पुनरावृत्ती कम हो जाती है ।

Disclaimer:  अपने खाने में बदलाव करने से पहले आप एक आहार विशेषज्ञ की सलाह अवश्य ले ।

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